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वेदों में मानव मूल्यों व पारिवारिक दायित्व पालन का संदेश

पंकज अरोड़ा की रिपोर्ट फरीदाबाद: वैदिक भजनोपदेशक प्रदीप शास्त्री ने अपने मधुर भजनों के माध्यम से युग प्रवर्तक महर्षि दयानन्द सरस्वती को याद करते हुए आर्य समाज के 150वें स्थापना वर्ष के अवसर पर कहा कि महान चिंतक, समाज सुधारक और प्रखर राष्ट्रवादी महर्षि दयानंद सरस्वती जी को कोटि-कोटि नमन। वे जीवनपर्यंत समाज को अज्ञानता, अंधविश्वास और आडंबर के खिलाफ जागरूक करने में जुटे रहे।

आचार्य हरिशंकर अग्निहोत्री ने अपने उद्बोधन में कहा कि यजुर्वेद के एक मंत्र में कहा गया है कि हर व्यक्ति को शुभ कर्म करने के लिए ही संकल्प लेना चाहिए। दुनिया में सुखी, दुखी, पापी और पुण्यात्मा सभी हैं, कर्म करते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि किसका साथ करना चाहिए और किन व्यवहारों को सीखना चाहिए, जिससे जीवन और समाज दोनों का हित होता हो। मानव जीवन की पूर्णता के लिए वैदिक शिक्षा या विद्या में मानव जीवन के अनिवार्य चार पुरुषार्थ मानव मूल्यों पर ही आधारित हैं। वैदिक शिक्षा में स्वस्थ चिंतन, शुभ कार्य और शुभत्व की कामना को ही उत्तम बताया गया है। वेदों में परिवार को समाज की आधारशिला माना गया है और इसमें माता-पिता, बच्चों, और परिवार के अन्य सदस्यों के बीच सद्भाव, सहयोग और सम्मान पर जोर दिया गया है। कहने की जरूरत नहीं कि वेद आज पूरी दुनिया को रोशनी दिखा सकते हैं। हम देखते हैं कि आज के पश्चिमी जगत में परिवार की संस्था बिखर चुकी है, जहां पति-पत्नी के बीच लगातार अविश्वास की स्थिति बनी रहती है और बच्चे हमेशा भय और असुरक्षा के काले बादलों में घिरे रहते हैं, क्योंकि बच्चे अक्सर इस संभावना से डरते हैं कि उनके माता-पिता एक-दूसरे से तलाक ले सकते हैं। घर की समृद्धि में पत्नी का विशेष उत्तरदायित्व है। गृहस्वामी पति की वह अपनी प्रिय मधुर वाणी से थकावट दूर करे। इसी प्रकार भाई-बहन सभी आपस में मिल-जुल कर रहें और अपने निर्धारित कर्त्तव्यों का पालन करते हुए परिवार को सुखी बनावें।

प्रधान विमल सचदेवा ने नवसंवत्सर व नवरात्रि के शुभारंभ पर सबको बधाई व शुभकामनाएं देते हुए कार्यक्रम के सफल आयोजन के लिए सबके सहयोग के लिए आभार प्रकट करते हुए धन्यवाद दिया। मंच संचालन करते हुए विजय भूषण आर्य ने आमंत्रित विद्वानों, भजनोपदेशक व विभिन्न आर्य समाज सदस्यों का कार्यक्रम में शामिल होने के लिए आभार प्रकट किया।

इस कार्यक्रम में आनंद महता, हरीश चंद्र बजाज, डा. हरिओम शास्त्री, योगाचार्य देवराज आर्य, वसु मित्र सत्यार्थी, जितेंद्र सरल, आर के रेखी, के पी गुप्ता, इंद्रजीत गिरधर, कर्नल ऋषि पाल, रघुबीर शास्त्री, एस पी अरोड़ा, प्रेम लता गुप्ता, प्रेम बहल, सुकीर्ति चावला, राशी वर्मा, रुकमणी टुटेजा, राखी वर्मा, ऊषा चितकारा सुषमा वधवा व अन्य शामिल हुए

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