पंकज अरोड़ा की रिपोर्ट/फरीदाबाद: आर्य समाज एन एच 3 के तत्वाधान में श्रवणी पर्व के उपलक्ष्य में त्रिदिवसीय वेद कार्यक्रम के समापन पर शिक्षाविद, आर्य समाज को पूर्ण समर्पित प्रसिद्ध, साहित्यकार, सामाजिक व धार्मिक विषयों पर 20 पुस्तकों के रचयिता स्व. विश्वामित्र सत्यार्थी की पुण्यतिथि पर एनआईटी नंबर तीन सी ब्लॉक में ‘भावांजलि समर्पण दिवस’ के रुप में यज्ञ- सत्संग कार्यक्रम आयोजित हुआ।
इस ‘भावांजलि समर्पण दिवस’ पर महान व्यक्तित्वों स्व. स्वदेश सत्यार्थी व स्व. विश्वामित्र सत्यार्थी के आर्यं समाज, शैक्षणिक, समाजिक व अन्य क्षेत्रों में उल्लेखनीय योगदान और अपने मूल्यों और आदर्शों के अनुसार एक सार्थक जीवन जीने के लिए स्मरण किया गया।
कार्यक्रम का शुभारंभ पुरोहित आचार्य विवेक दीक्षित द्वारा यज्ञ से किया गया। तत्पश्चात सुविख्यात आर्य युवा भजनोपदेशक प्रदीप शास्त्री ने अपने मधुर भजनों के माध्यम से पारिवारिक और सामाजिक मूल्यों, संयुक्त परिवार के महत्व, कर्तव्यपरायणता, परिवार और समाज को जोड़ने वाले मजबूत नैतिक मूल्यों पर गहराई से प्रकाश डाला।
उत्तराखंड गौरव अलंकृत युवा वैदिक विद्वान व उपदेशक आचार्य अनुज शास्त्री जी (देहरादून) का पहली बार फरीदाबाद में आगमन होना और उनके विचारों को सुनने का अवसर मिलना शहरवासियों के लिए एक विशेष और ज्ञानवर्धक अनुभव रह।
आचार्य अनुज शास्त्री ने अपने व्याखान में बताया कि श्री राम को ‘आर्य पुरुष’ या मर्यादित पुरुषोत्तम बनाने में उनके माता-पिता, राजा दशरथ और माता कौशल्या के त्याग, तपस्या और संस्कार महत्वपूर्ण थे, जिन्होंने उन्हें धर्म और न्याय के मार्ग पर चलना सिखाया, भले ही इसके लिए उन्हें स्वयं कष्ट सहना पड़ा। दशरथ ने राम के पालन-पोषण में जो त्याग किया और कौशल्या ने जो संस्कार दिए, उसी से राम ने एक आदर्श पुत्र और राजा के रूप में अपना जीवन व्यतीत किया। माता-पिता के कष्टों और त्याग को देखकर राम ने भी अपने पिता की इच्छा पूरी करने के लिए राजपाट का त्याग किया और 14 वर्षों का वनवास स्वीकार किया।
भगवान राम के त्याग और संस्कार का समाज में अनुकरण करना आज भी प्रासंगिक है, क्योंकि उनके जीवन से त्याग, कर्तव्यनिष्ठा, सत्यनिष्ठा, धैर्य, माता पिता के आदर्शों का पालन व अनुसरण और गुरु-भक्ति जैसे महत्वपूर्ण मूल्यों की सीख मिलती है। आज के समाज में जब स्वार्थ और उपभोक्तावाद बढ़ रहा है, तब श्री राम का यह आदर्श जीवन बताता है कि कैसे व्यक्ति व्यक्तिगत इच्छाओं से ऊपर उठकर परिवार और समाज के प्रति अपने कर्तव्यों का निर्वाह कर सकता है।
श्री राम जैसी संतान केवल इच्छा करने से नहीं मिलती, बल्कि इसके लिए माता-पिता को खुद को राजा दशरथ और कौशल्या के चरित्रों से प्रेरणा लेकर एक आदर्श माता-पिता के रूप में ढालना होगा, ताकि वह अपने बच्चे को एक उत्कृष्ट इंसान बना सकें
घर संस्कारों की जन्मस्थलि है। संस्कारित करने का कार्य घर से प्रारम्भ करना चाहिए । बच्चे उपदेश से नहीं ,अनुसरण से सीखते हैं। बच्चों के प्रथम गुरु माता पिता होते हैं। पारिवारित पाठशाला मे बच्चा अच्छे और बुरे का अन्तर समझाने का प्रयास करता है। आजकल माता-पिता दोनों की व्यस्तता के कारण बच्चों मे संस्कार की कमी देखी जा रही है।
आज का समाज प्रदूषित हो गया है। विचारों और अच्छे संस्कारों की कमी हो गई है, जिसका प्रभाव हमारे बच्चों पर पड़ रहा है। आज माता-पिता के पास अपने बच्चों के लिए समय नहीं है। वे उन्हें खुश करने के लिए अनेक प्रकार के सुख-साधन के साथ उनपर पैसे खर्च कर रहे हैं। ऐसे में उनमें अच्छे संस्कारों की कमी हो गई है। उन्होंने कहा कि बच्चों को पैसे की जरूरत नहीं, बल्कि अच्छे संस्कारों की जरूरत है।

वसु मित्र सत्यार्थी ने सबका स्वागत करते हुए कार्यक्रम में शामिल होने के लिए आभार प्रकट किया। मंच संचालन महामंत्री जितेंद्र सरल ने किया व सफल आयोजन के लिए सबके सहयोग के लिए साधुवाद दिया। इस कार्यक्रम में आचार्य हरिओम शास्त्री, कर्मचंद शास्त्री, सत्य प्रकाश अरोड़ा, संजय खट्टर, सुरेश शास्त्री, संतोष शास्त्री, सतीश सत्यम, सुधीर बंसल, राजन सिक्का, धर्मवीर शास्त्री, सुरेश गुलाटी, अजीत आर्य, सतीश कौशिक, निष्ठाकर आर्य,होती लाल आर्य, संदीप आर्य, कुलभूषण सखूजा, धनसिंह गुप्ता, सुरेश अरोड़ा, अजय ग्रोवर, सरदार प्रीतम सिंह, जोगिंदर सोढ़ी, विभु मित्र सत्यार्थी, नीरा सत्यार्थी, अदिति दुआ, माता यज्ञानंदा, प्रतिभा यति, विमल सचदेवा, ऊषा चितकारा, सन्तोष मदान, ज्ञान आहूजा, संघमित्रा कौशिक, विमला ग्रोवर, श्रुति सेतिया, नर्वदा शर्मा व अनेक संस्थाओं के प्रतिनिधियों ने भाग लिया।