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प्रभु सिमरन से होता है भव सागर पार: डा. नरेंद्र वेदालंकार

पंकज अरोड़ा की रिपोर्ट फरीदाबाद: 05 सितंबर, आर्य केंद्रिय सभा (नगर निगम क्षेत्र) के तत्वाधान में विभिन्न आर्य समाजों में 8 दिवसीय वेद प्रचार महोत्सव के चौथे दिन आर्य प्रतिनिधि सभा के अध्यक्ष देशबंधु आर्य की अध्यक्षता में आर्य नेहरू ग्राउंड में आयोजित कार्यक्रम में विभिन्न बड़ी संख्या में आर्यजन सम्मिलित हुए।

आर्य भजनोपदेशक आचार्य सतीश सत्यम ने आत्मशुद्धि के लिए प्रभु सिमरन करते हुए भावपूर्ण प्रेरक भजन प्रस्तुत किये‌।

मुख्य वक्ता‌ आर्य विद्वान डा. नरेंद्र वेदालंकार ने अपने उद्बोधन में कहा कि इस भवसागर से पार पाने के लिए प्रभु नाम रुपी नौका में बैठकर ही पार किया जा सकता है। मनुष्य को अपने अंदर से दुख और बुराइयों की प्रवृत्ति को हटाकर ‘इंद्र’ अर्थात आत्मा, समृद्धि और अच्छे कर्मों को बढ़ाना चाहिए। बुराईयों पर विजय प्राप्ति और राष्ट्र उन्नति के लिए निरंतर प्रयत्नशील रहना आवश्यक है। मन वचन कर्म में सत्यता वैदिक आचरण से इंद्रियों पर नियंत्रण में वेद अध्ययन सहायक है। वेद की आज्ञा है कृण्वन्तो विश्वमार्यम्। इसका यही आशय है कि प्रत्येक मनुष्य को अन्यों को ‘आर्य’ अर्थात् श्रेष्ठ गुण, कर्म व स्वभाव वाला बनाना है। इतना ही नहीं उसे चाहिए कि वह उसे अधर्म से धर्म की ओर ले जाए। उसको अविज्ञान से विज्ञान की ओर ले जाए।

गुरूकुल इंद्रप्रस्थ के संचालक तथा आर्य केंद्रिय सभा के अध्यक्ष आचार्य ऋषिपाल, दयानंद शिक्षा संस्थान के अध्यक्ष आनंद महता, सतीश कौशिक, रामबीर नाहर, कुलभूषण सखुजा, मानज्ञ शास्त्री, कर्मचंद शास्त्री, वसु मित्र सत्यार्थी, जोगेंद्र कुमार, सुधीर कुमार बंसल, संजय आर्य, शिवकुमार टुटेजा, नीलम कालिया, नर्वदा शर्मा, रूकमणि टुटेजा, निर्मल भाटिया, अनीता उप्पल, पूनम, अंजु गुंबर, नीलिमा प्रतिभा इस कार्यक्रम में सम्मिलित हुए।

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