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सभी के लिए न्याय की दिशा में सुधार

पंकज अरोड़ा की रिपोर्ट/फरीदाबाद: 2 अगस्त 2025: भारत के सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने मानव रचना विश्वविद्यालय में आयोजित द्वितीय न्यायमूर्ति आर.सी. लाहोटी मेमोरियल के अंतर्गत “कानून से मुक्ति तक : बदलते भारत में वंचितों के लिए न्यायिक सहायता को सशक्त बनाना” विषय पर विचार रखे। यह आयोजन भारत के 35वें प्रधान न्यायाधीश (स्वर्गीय) न्यायमूर्ति आर.सी. लाहोटी की स्मृति में आयोजित किया गया, जिन्होंने मानव रचना विश्वविद्यालय के विधि संकाय की परामर्श समिति के संस्थापक अध्यक्ष के रूप में भी योगदान दिया था।

इस स्मृति व्याख्यान में अनेक विशिष्ट अतिथि उपस्थित रहे। न्यायमूर्ति यू.यू. ललित, भारत के पूर्व प्रधान न्यायाधीश, मुख्य अतिथि के रूप में मंच पर उपस्थित थे। उन्होंने न्यायमूर्ति लाहोटी को एक कर्मयोगी बताया जो अपनी स्पष्ट सोच, अनुशासन और राष्ट्रीय एकता के प्रति अडिग समर्पण के लिए जाने जाते थे। अन्य प्रमुख उपस्थितजनों में न्यायमूर्ति के.के. लाहोटी (पूर्व कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश, मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय एवं न्यायमूर्ति आर.सी. लाहोटी के भ्राता), डॉ. वंदना मरदा (पुत्री), डॉ. प्रशांत भल्ला (अध्यक्ष, मानव रचना शैक्षिक संस्थान), डॉ. अमित भल्ला (उपाध्यक्ष) तथा प्रोफेसर (डॉ.) दीपेंद्र कुमार झा (कुलपति, मानव रचना विश्वविद्यालय) शामिल रहे। इस अवसर पर न्यायाधीशों, वरिष्ठ अधिवक्ताओं, कानूनविदों एवं शिक्षाविदों की उपस्थिति रही।

कार्यक्रम की शुरुआत कुलपति प्रो. (डॉ.) दीपेंद्र कुमार झा के स्वागत भाषण से हुई, जिसमें उन्होंने न्यायमूर्ति लाहोटी को उनके न्यायिक निर्णयों और अन्य लोगों की श्रद्धा से जानने का अनुभव साझा किया। उन्होंने इस व्याख्यान को कानून, जीवन और न्यायमूर्ति लाहोटी की स्थायी विरासत पर विचार करने का अवसर बताया।

अपने मुख्य वक्तव्य में न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा, “एक राष्ट्रव्यापी अभियान ‘90 दिनों के लिए मध्यस्थता’ आरंभ किया गया है, जो वर्तमान में जारी है। हम अधिक से अधिक विवादास्पद मामलों को चिन्हित कर उन्हें मध्यस्थता के माध्यम से सुलझाने का प्रयास कर रहे हैं। वर्षों से हम न्यायिक सहायता को केवल निःशुल्क या रियायती कानूनी प्रतिनिधित्व के रूप में देखते आए हैं। जबकि यह आवश्यक है, यह केवल आरंभिक चरण है। न्याय तक वास्तविक पहुंच के लिए प्रतिनिधित्व के साथ-साथ जानकारी, सशक्तिकरण, सहयोग और करुणा भी आवश्यक है। प्रत्येक तकनीकी प्रगति हमें कानून की आत्मा के निकट लानी चाहिए—एक ऐसा कानून जो हर भाषा में बोले, हर पुकार का उत्तर दे और तर्कों को न्याय की दिशा में मोड़े। मेरा विश्वास है कि न्यायिक सहायता को वास्तव में सार्वभौमिक बनाना चाहिए—उसकी पहुंच और भावना दोनों में। आज की चुनौती केवल तकनीकी दूरी को कम करने की नहीं, बल्कि तकनीकी नवाचार को मानवीय संवेदना और सामाजिक एकजुटता के साथ जोड़ने की है।”

न्यायमूर्ति यू.यू. ललित ने कहा, “मेरे अनुसार यदि सर्वोच्च न्यायालय में कोई सच्चे अर्थों में कर्मयोगी थे, तो वह न्यायमूर्ति आर.सी. लाहोटी थे—पूर्ण तैयारी, सुनवाई के दौरान सजगता, विचारों में स्पष्टता और संक्षिप्त किंतु प्रभावशाली निर्णय उनकी पहचान थे। मुझे अनेक महत्त्वपूर्ण मामलों में उनके समक्ष प्रस्तुत होने का अवसर मिला, और प्रत्येक अवसर पर उन्होंने संविधान की स्पष्टता, राष्ट्रीय एकता तथा न्यायिक मर्यादा के प्रति अपनी प्रतिबद्धता प्रदर्शित की।”

डॉ. वंदना मरदा ने भावुक स्वर में कहा, “मैं सोचती हूँ क्या औपचारिक धन्यवाद की आवश्यकता है भी या नहीं। जब भी हम लाहोटी परिवार मानव रचना विश्वविद्यालय परिसर में आते हैं, तो अपनापन, स्नेह और आत्मीयता का अनुभव होता है। ऐसा लगता है जैसे हम यहाँ अतिथि नहीं, बल्कि इस परिवार का ही भाग हैं। इस परिसर में मेरे पिता न्यायमूर्ति लाहोटी की स्मृतियाँ केवल संजोई नहीं गई हैं, बल्कि उन्हें सम्मानित किया गया है और पुनः जीवंत किया गया है। पिछले वर्ष मेरे माता-पिता की विवाह वर्षगांठ पर विद्यार्थियों ने उनके जीवन पर आधारित प्रस्तुति दी—इससे बढ़कर कोई श्रद्धांजलि नहीं हो सकती। उन्होंने हमें सिखाया कि सफलता का कोई मूल्य नहीं यदि उसमें चरित्र न हो; अनुशासन ही प्रतिबद्धता है; और सेवा केवल बड़े कार्यों में नहीं, बल्कि प्रतिदिन की ईमानदारी और करुणा में होती है। आज, मेरी माता जी की ओर से जो यहाँ उपस्थित नहीं हो सकीं, तथा पूरे परिवार की ओर से, हम मानव रचना समुदाय को उनके निरंतर सम्मान हेतु हृदय से धन्यवाद देते हैं।”

डॉ. प्रशांत भल्ला, अध्यक्ष, मानव रचना शैक्षिक संस्थान ने अपने उद्बोधन में कहा, “यह केवल एक व्याख्यान नहीं, बल्कि एक आत्मचिंतन का क्षण है—एक ऐसे न्यायविद को श्रद्धांजलि, जिन्होंने केवल भारत की अदालतों में ही नहीं बल्कि हमारी विधिक परंपरा की नैतिक आत्मा में भी स्थान बनाया। न्यायमूर्ति लाहोटी का जीवन ईमानदारी, सादगी और संवैधानिक न्याय की गहरी समझ से परिपूर्ण था। उनके निर्णय केवल विधिक दृष्टि से गहरे नहीं थे, बल्कि मानवीय संवेदना से भी जुड़े थे। उनका जीवन छात्रों के लिए एक मार्गदर्शक बने।”

न्यायमूर्ति आर.सी. लाहोटी मेमोरियल की शुरुआत वर्ष 2024 में भारत के पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद द्वारा की गई थी, जिसका उद्देश्य महत्त्वपूर्ण विधिक और संवैधानिक विषयों पर संवाद को प्रोत्साहित करना है। इस श्रृंखला के अंतर्गत न्यायमूर्ति आर.सी. लाहोटी मूट कोर्ट प्रतियोगिता, रतनलाल लाहोटी स्मृति विधि पुस्तकालय, और रतनलाल लाहोटी स्वर्ण पदक जैसे शैक्षणिक और शोध-आधारित उपक्रमों को भी प्रोत्साहन प्राप्त है।

कार्यक्रम का समापन प्रोफेसर (डॉ.) आशा वर्मा, अधिष्ठाता, डीन, स्कूल ऑफ लॉ द्वारा धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुआ। उन्होंने सभी गणमान्य व्यक्तियों एवं उपस्थितजनों के प्रति आभार व्यक्त किया और विश्वविद्यालय की इस प्रतिबद्धता को दोहराया कि वह न्यायमूर्ति लाहोटी द्वारा प्रतिपादित मूल्यों—अनुशासन, सत्यनिष्ठा और विधिक क्षेत्र के प्रति आजीवन समर्पण—को आगे बढ़ाने के लिए निरंतर कार्यरत रहेगा।

MREI के बारे में:

1997 में स्थापित, मानव रचना शैक्षणिक संस्थान (MREI) शिक्षा में उत्कृष्टता का प्रतीक हैं, जो विभिन्न क्षेत्रों में विशिष्ट शिक्षा प्रदान करते हैं। 41,000 से अधिक पूर्व छात्र, 135+ वैश्विक शैक्षणिक सहयोग और 80+ नवाचार और ऊष्मायन उद्यमों के साथ, MREI प्रमुख संस्थानों का केन्द्र है, जिसमें मानव रचना विश्वविद्यालय (MRU), मानव रचना इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ रिसर्च एंड स्टडीज (MRIIRS) – NAAC A++ मान्यता प्राप्त, और मानव रचना डेंटल कॉलेज (MRIIRS के तहत) – NABH मान्यता प्राप्त हैं। MREI भारत भर में 12 स्कूल भी संचालित करता है, जो भारतीय और अंतर्राष्ट्रीय पाठ्यक्रम जैसे IB और कैम्ब्रिज प्रदान करते हैं। MRIIRS को QS वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग्स 2026 में मान्यता प्राप्त है, साथ ही इसे टीचिंग, एम्प्लॉयबिलिटी, अकादमिक विकास, सुविधाएं, सामाजिक जिम्मेदारी और समावेशिता के लिए QS 5-स्टार रेटिंग प्राप्त है। MRIIRS हाल ही में NIRF रैंकिंग 2024 में शीर्ष 100 विश्वविद्यालयों की सूची में 92वें स्थान पर पहुंचा और डेंटल श्रेणी में 38वें स्थान पर था।

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