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मां-बाप द्वारा बच्चों को बचपन में दिए संस्कार मां बाप के बुढ़ापे का सहारा बनता है

पंकज अरोड़ा की रिपोर्ट फरीदाबाद: 09 सितंबर, आर्य केंद्रीय सभा (नगर निगम क्षेत्र) के तत्वाधान में आयोजित 8 दिवसीय वेद प्रचार महोत्सव के तहत आर्य प्रतिनिधि सभा, हरियाणा के अध्यक्ष देशबंधु आर्य की अध्यक्षता में‌ शिक्षाविद, आर्य समाज को पूर्ण समर्पित प्रसिद्ध, साहित्यकार, सामाजिक व धार्मिक विषयों पर 20 पुस्तकों के रचयिता आर्य मनीषी स्व. विश्वामित्र सत्यार्थी की पुण्यतिथि पर एनआईटी नंबर तीन सी ब्लॉक में भजन सत्संग कार्यक्रम आयोजित हुआ।

प्रसिद्ध आर्य भजनोपदेशक आचार्य सतीश सत्यम ने प्रेरक वैदिक भजनों द्वारा उपस्थित लोगों को भाव-विभोर कर दिया। उन्होंने भजनों के माध्यम से संदेश दिया कि वात्सल्य, ममत्व, स्नेह, त्याग, विश्वास ये सभी परिवार के अधिष्ठान गुण हैं।

मुख्य वक्ता‌ आर्य विद्वान डा. नरेंद्र वेदालंकार ने अपने उद्बोधन में बताया कि बच्चों को अगर संस्कारों की छांव में रचनात्मकता और क्रियाशीलता के साथ पलने-बढ़ने दिया जाए तो इस संसार की सुंदरता को कई गुणा बढ़ाया जा सकता है। संस्कारी बच्चा ही भावी पीढ़ी का निर्माता होता है। बच्चे किसी भी समाज की सबसे महत्वपूर्ण नींव होते हैं। इसलिए, माता-पिता की भूमिका उनके जीवन में अत्यधिक महत्त्व रखती है। बच्चों को मानवता, क्षमा, धैर्य, सहनशक्ति, उदारता, और कर्तव्य परायण होने का तत्व सिखाना न केवल उनकी व्यक्तिगत विकास में मदद करता है, बल्कि समाज को भी सुदृढ़ बनाने में सहायक होता है।

संयुक्त परिवार हमारे समाज की रीढ़ है। आजकल संयुक्त परिवार की जगह एकल परिवार हो गया। जिसमें बुजुर्गो के लिए कोई जगह नहीं। आज माता-पिता के पास बच्चों के लिए समय नहीं है। ऐसे में बच्चे संस्कार और नैतिक मूल्य वाली शिक्षा से दूर हो गए हैं। वैदिक शिक्षा बच्चों के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह उनमें संस्कार, आत्मिक पवित्रता, और व्यक्तित्व विकास की भावना विकसित करती है।

गुरूकुल इंद्रप्रस्थ के संचालक तथा आर्य केंद्रिय सभा के अध्यक्ष आचार्य ऋषिपाल ने कहा कि वेद प्रचार के माध्यम से वेदों के बारे में ज्ञान प्राप्ति होने से मानव और समाज का कल्याण होता है। उन्होंने बताया वैदिक पथ पर चलते हुए स्व. विश्वामित्र सत्यार्थी जी का संपूर्ण जीवन परमार्थ और पुरूषार्थ की दिशा में अग्रसर रहा। उनके तपस्वी और समाज को समर्पित जीवन से प्रेरणा लेकर हम उसका अनुसरण कर उनके आदर्शों को चिरस्थाई बना सकते हैं‌।

कार्यक्रम में आनंद महता, कर्मचंद शास्त्री, जितेंद्र सरल सुधीर बंसल, शिव कुमार टुटेजा, संजय आर्य, सतीश कौशिक, कुलभूषण सखुजा, सरदार प्रीतम सिंह, सरदार जोगेंद्र सिंह सोढ़ी, अजय ग्रोवर, सुरेश अरोड़ा, महिन्द्रपाल भाटिया, जोगेंद्र कुमार, सत्यप्रकाश अरोड़ा, विकास भाटिया, नरेश मोंगा, महाबीर सिंह भड़ाना, नंदलाल कालरा, मंजुला बक्षी, नीरा सत्यार्थी, मीनाक्षी त्रिखा, बिमला ग्रोवर, विमल सचदेवा, नर्वदा शर्मा, ज्ञान देवी आहूजा, रुकमणी टुटेजा, प्रतिभा यति, संतोष मदान, मीरा हसीजा, सरला देवी, संघमित्रा कौशिक विशेष रूप से उपस्थित रहे।

वसु मित्र सत्यार्थी ने उपस्थित आचार्य जी तथा सब श्रद्धालुओं का कार्यक्रम में शामिल होकर इसे सफल और यादगार बनाने के लिए बधाई देते हुए धन्यवाद किया।

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