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लिंग्याज विद्यापीठ में मृत्युपूर्व घोषणा की प्रासंगिकता और स्वीकार्यता पर राष्ट्रीय वेबिनार हुआ आयोजित

मौत की आशंका से वही मानवीय भावनाएं पैदा होती हैं जो शपथ के तहत कर्तव्यनिष्ठ और निर्दाेष व्यक्ति में होती हैः दुर्गेन्द्र सिंह राजपूत

खबरेंNcr रिपोर्टेर पंकज अरोड़ा फरीदाबाद: 29 अक्टूबर, लिंग्याज विद्यापीठ डीम्ड टू बी यूनिवर्सिटी में स्कूल ऑफ लॉ की ओर से भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 के तहत मृत्युपूर्व घोषणा की प्रासंगिकता और स्वीकार्यता पर राष्ट्रीय वेबिनार आयोजित किया गया। हेड ऑफ द स्कूल प्रोफेसर (डॉ.) मोनिका रस्तोगी ने बताया कि यह कार्यक्रम यूनिवर्सिटी चांसलर डॉ. पिचेश्वर गड्ढे, और प्रो चांसलर प्रोफेसर (डॉ.) एम.के. सोनी के दिशा निर्देशन में करवाया गया।


कार्यक्रम संयोजिका मोहिनी तनेजा ने बताया कि इस मौके पर आईआईएमटी कॉलेज ऑफ लॉ, ग्रेटर नोएडा के हेड ऑफ द डिपार्टमेंट दुर्गेन्द्र सिंह राजपूत मुख्यवक्ता के रूप में उपस्थित रहे। जिन्होंने मृत्युपूर्व घोषणा की अवधारणा और उन्हें रिकॉर्ड करने की प्रक्रिया पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने बताया कि मृत्यु पूर्व दिए गए बयान को इस आधार पर साक्ष्य के रूप में स्वीकार किया जाता है कि मौत की आशंका से वही मानवीय भावनाएं पैदा होती हैं जो शपथ के तहत कर्तव्यनिष्ठ और निर्दाेष व्यक्ति में होती हैं। उन्होंने बताया कि यह एक बयान है जिसमें किसी व्यक्ति की मृत्यु से पहले के अंतिम शब्द शामिल होते हैं जिन्हें सत्य माना जाता है, और यह किसी भी उद्देश्य या द्वेष से प्रेरित नहीं होता है। इसलिए मृत्यु पूर्व बयान आवश्यकता के सिद्धांत पर साक्ष्य के रूप में स्वीकार्य है क्योंकि इसमें निर्माता के जीवित रहने की बहुत कम उम्मीद होती है, और यदि विश्वसनीय पाया जाता है, तो यह निश्चित रूप से सजा का आधार बन सकता है। इस वेबिनार में देश के विभिन्न राज्यों जैसे उत्तर प्रदेश, राजस्थान, दिल्ली, बिहार, हिमाचल प्रदेश और पंजाब से करीब 139 प्रतिभागियों ने इसमें भाग लिया।


राष्ट्रीय स्तर पर हुए वेबिनार की सफलता पर रेजिस्ट्रार प्रेम कुमार सलवान और एकेडमिक डीन प्रोफ़ेसर (डॉ.) सीमा बुशरा ने विभाग के सभी स्टाफ सदस्यों को बधाई दी और भविष्य में भी इस तरह के कार्यक्रम करवाते रहने के लिए प्रेरित किया। इस कार्यक्रम को सफल बनाने में स्वेक्षा, विवेक, शिवेंद्र, शिल्पा, रूचि और डॉ. सुरेश नगर का योगदान महत्वपूर्ण रहा।

The School of Law at Lingaya’s Vidyapeeth (Deemed to be University) recently organized a National Webinar on the topic of “Relevancy and Admissibility of Dying Declarations under The Indian Evidence Act, 1872.” The Head of the school, Prof. (Dr.) Monika Rastogi, mentioned that this event was conducted under the supervision of the Management Committee, which includes Chancellor Dr. Picheswar Gadde, Pro Chancellor Prof. (Dr.) M. K. Soni, Registrar Mr. Prem Kumar Salvan, and Academic Dean Prof. Dr. Seema Bushra.

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