कार्यक्रम की अध्यक्षता गुरुकुल इंद्रप्रस्थ के संचालक और आर्य केंद्रीय सभा (नगर निगम क्षेत्र) के अध्यक्ष आर्चाय ऋषिपाल ने की। आर्योपदेशक सतीश सत्यम ने अपने मधुर और प्रेरक भजनों से सबका मन मोह लिया। उन्होंने कहा कि सत्यार्थी जी का संपूर्ण जीवन परमार्थ और पुरूषार्थ की दिशा में अग्रसर रहा।
भजनोपदेशक जितेंद्र प्रभाकर सरल ने सत्यार्थी जी को समर्पित गीत द्वारा अपनी श्रद्धांजलि दी।
मुख्य वक्ता, दर्शनाचार्य, स्वामी ज्योतिरानंद ने श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर प्रवचन करते हुए कहा कि उनका पूरा जीवन चरित्र हमें धर्म पथ पर अग्रसर होने की प्रेरणा देता है। भगवान कृष्ण का संपूर्ण जीवन ही एक प्रबंधन की किताब है। भगवान श्रीकृष्ण मात्र कथाओं में पढ़ा या सुना जाने वाले पात्र नहीं है, बल्कि वह चरित्र और व्यवहार में उतारे जाने वाले ईश्वर हैं। उनका पूरा जीवन चरित्र हमें धर्म पथ पर अग्रसर होने की प्रेरणा देता है। जीवन जीने के तरीके को अगर किसी ने परिभाषित किया है तो वो कृष्ण हैं। कर्म से होकर परमात्मा तक जाने वाले मार्ग को उन्हीं ने बताया है। बाल्यावस्था में गोसेवा की, युवावस्था में राज संभाला तथा धर्म की रक्षा के लिए राजाओं का दमन किया। चाहे अर्जुन, सुदामा हो या उद्धव, कृष्ण ने जिसे अपना मान लिया, उसका साथ जीवन भर दिया। इसलिए अपने रिश्तों को दिल से जीएं, दिमाग से नहीं। उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में हर किसी को भगवान श्रीकृष्ण से प्रेरणा लेनी चाहिए, तभी हम अपने जीवन को बेहतर बना पाएंगे।
योगेंद्र फोर, कर्मचंद शास्त्री और डा. हरिओम शास्त्री ने दिव्यात्मा विश्वामित्र सत्यार्थी को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि उनके तपस्वी और समाज को समर्पित जीवन से प्रेरणा लेकर हम उसका अनुसरण कर उनके आदर्शों को चिरस्थाई बना सकते हैं।
आनंद महता, सुधीर बंसल, शिव कुमार टुटेजा, संजय आर्य, सतीश कौशिक, कुलभूषण सखुजा, सरदार प्रीतम सिंह, सरदार जोगेंद्र सिंह सोढ़ी, सरदार इंद्रजीत सिंह, हरि ओम शास्त्री, सत्यदेव गुप्ता, अजय ग्रोवर, सुरेश अरोड़ा, महिन्द्रपाल भाटिया, राजेश भाटिया, मनोज वोहरा, जोगेन्दर कुमार, आशा पंडित, प्रेम बहल, ऊषा चितकारा, सुषमा वधवा, विशेष रूप से उपस्थित रहे।
वसु मित्र सत्यार्थी ने उपस्थित स्वामी जी और आचार्य जी तथा सब श्रद्धालुओं का कार्यक्रम में शामिल होकर इसे सफल और यादगार बनाने के लिए बधाई और धन्यवाद किया।