पंकज अरोड़ा की रिपोर्ट पलवल: 18 अगस्त, मेरी जन्मभूमि व माता स्व. स्वदेश सत्यार्थी तथा पिता स्व. विश्वामित्र सत्यार्थी की कर्मभूमि, पलवल, जहाँ बच्चों के व्यक्तित्व का सामंजस्य पूर्ण और सर्वांगीण विकास करने के उदेश्य से माता पिता ने 1960 में सरस्वती शिशु मंदिर स्कूल की स्थापना की थी।
उस पुण्य भूमि, पलवल में आर्य समाज जवाहर नगर (कैंप) द्वारा आयोजित यज्ञ, भजन, प्रवचन, विभिन्न स्कूलों के लिए आयोजित देश भक्तों की चित्र प्रतियोगिता तथा देश भक्ति गीत प्रतियोगिता में वसु मित्र सत्यार्थी को ‘विशेष अतिथि’ के रुप में आमंत्रित कर सम्मानित किया गया।
इस प्रतियोगिताओं में 1से 5, 6 से 8 और 9 से 12 कक्षावर्ग में विभिन्न स्कूलों के विद्यार्थियों ने भाग लिया। देश भक्ति से ओतप्रोत गीत कविताओं, गीतों के माध्यम से देश भक्तों की कुर्बानियों को याद किया गया। अपनी कलात्मक प्रतिभा का प्रर्दशन करते हुए प्रतिभागियों ने देशभक्तों, वीर सपूतों के शानदार चित्र बनाये।
प्रतियोगिता विजेताओं के निर्णायक मंडल सदस्य के रूप में सम्मिलित होकर वसु मित्र सत्यार्थी ने प्रतियोगिता के विजेताओं को उनके पिता स्व. विश्वामित्र सत्यार्थी द्वारा रचित पुस्तक ‘पिता – पुत्र के प्रसंग’ देकर पुरस्कृत किया गया।
इस अवसर पर प्रतिभागी बच्चों की सराहना करें और उनकी प्रतिभा को निखारने और कल्पनाओं की उड़ान में मदद करने के आर्य समाज के प्रयास के लिए साधुवाद दिया। उन्होंने कहा बच्चों के अंदर असीम प्रतिभा छिपी होती है, बस उसे बाहर निकालने की जरूरत होती है। एक बार उन्हें मौका मिल जाए तो उनकी प्रतिभाएं सामने आ जाती है। माता-पिता बच्चों के व्यक्तित्व और चरित्र दोनों को प्रभावित करने में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। उन्होंने अपने माता पिता के आदर्श जीवन और सामाजिक, धार्मिक योगदान को याद करते हुए कहा हमारे परिवार के सदस्यों के व्यक्तित्व निखार और विकास के शिल्पकार हमारे माता पिता हैं और हम हमेशा उनके ऋृणी रहेंगे